करीब 20 साल पहले जब भारतीयों ने ‘थोड़ी सी तो लिफ्ट करा दे’ गीत के माध्यम से गायक-संगीतकार अदनान सामी को जाना, तब सामी ने भी नहीं सोचा होगा कि मोदी सरकार उन्हें इतना लिफ्ट करा देगी कि मामला पद्म श्री तक जा पहुंचेगा। ब्रिटेन में पले-बढ़े और मूलत: पाकिस्तानी गायक सामी ने पांच साल पहले भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन दिया और मोदी सरकार ने उनकी इच्छा को पूरा कर दिया। इन्हीं सामी को इस साल पद्श्री दिए जाने पर राजनीतिक बवाल मचा। उन्हें पाकिस्तानी बताकर कुछ लोगों ने मोदी सरकार की उन पर मेहरबानी को लेकर सवाल उठा दिए। जहां कांग्रेस में इसको लेकर दो रायें दिखीं तो महाराष्ट्र में एनसीपी के नवाब मलिक ने कहा कि यह साफ है कि अगर कोई भी पाकिस्तान से ‘जय मोदी’ का जाप करेगा, तो उसे देश की नागरिकता के साथ-साथ पद्म श्री पुरस्कार भी मिलेगा। यह देश के लोगों का अपमान है। इसके पहले कांग्रेस प्रवक्ता जयवीर शेरगिल ने एक वीडियो जारी कर सवाल किया था कि जिस व्यक्ति(अदनान) के पिता ने 1965 की लड़ाई में पाक वायु सेना मे रहकर भारत पर हमले किए उसे पद्म श्री क्यों? उन्होंने कहा कि पद्म श्री पाने का ( मोदी सरकार का यह) नया मानदंड है। उधर वरिष्ठ कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने अपनी संयत और सटीक प्रतिक्रिया में कहा कि मैं सिंगर और संगीतकार अदनान सामी को पद्मश्री दिए जाने से बहुत खुश हूं। मैंने सरकार से इसकी सिफारिश की थी और मोदी सरकार ने उन्हें भारतीय नागरिकता प्रदान की। इसी के साथ उन्होंने मोदी सरकार पर यह कहकर निशाना साधा कि जब सरकार को किसी भी व्यक्ति को बिना धार्मिक पक्षपात के नागरिकता देने का अधिकार है तो फिर सीएए क्यों? सिर्फ भारतीय राजनीति का ध्रुवीकरण करने के लिए ? अगर पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के उत्पीड़ित मुस्लिम समुदाय भारतीय नागरिकता की मांग करते हैं, तब मोदी सरकार क्या करेगी?’ इन हमलों के जवाब में भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने पलटवार किया कि अदनान सामी की मां नौरीन खान भारतीय हैं और जम्मू से हैं। उन्होंने कांग्रेस पर जम्मू-कश्मीर की मुस्लिम महिलाओं के अपमान का आरोप लगाते हुए कहा कि उसे देशद्रोहियों से नहीं, ‘अच्छे’ मुसलमानो से दिक्कत है। उधर जयवीर के हमले पर खुद अदनान सामी ने जवाबी ट्वीट किया कि बच्चे ( जयवीर) क्या तुम अपना दिमाग क्लीयरेंस सेल से लाए हो या फिर सेकंड हैंड नॉवेल्टी स्टोर से खरीदा है? क्या बर्कले में तुम्हे यही सिखाया गया है कि माता-पिता के कृत्यों के लिए बेटा जिम्मेदार या सजा का हकदार होता है? और तुम वकील हो? लॉ स्कूल से तुमने यही सीखा है?’
बता दें कि इस साल गणतंत्र दिवस पर सरकार ने जिन 118 हस्तियों को पद्म अलंकरणों से नवाजा, उनमें सबसे चौंकाने वाला नाम अदनाना सामी का था। कारण अदनान मूल रूप से उस मुल्क पाकिस्तान का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसको गरियाते रहना राष्ट्रभक्ति का स्थायी सबूत है। हालांकि अदनान विजिटर्स वीजा पर भारत में 2001 से रह रहे हैं। भारत में तीसरी शादी करने और मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद उन्होंने भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन किया और मोदी सरकार ने नागरिकता देकर एक ‘देशभक्त’ मुसलमान और खड़ा कर दिया। लिहाजा यह संयोग भर नहीं है सामी मोदी सरकार के हर कदम पर अपने समर्थन की ताल मिलाते रहते हैं। सीएए और एनआरसी पर भी वो मोदी सरकार के साथ हैं।
जहां तक कलाकार अदनान की बात है तो वो एक योग्य और असाधारण प्रतिभा के धनी हैं। अदनान गायक होने के साथ अप्रतिम पियानोवादक हैं। उन्हें पियानो पर हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत बजाने में महारत हासिल है। यही कारण है कि कई प्रख्यानत भारतीय कलाकारो ने भी अदनान के साथ काम किया है और उनकी सराहना की है। दो दशक पहले जारी उनका अलबम ‘कभी तो नजर मिलााअो’ आज भी सुना जाता है। सामी शायद उन बिरले कलाकारो में हैं, जिन्हें (जब वो पाक नागरिक थे) 2010 में पाक प्रधानमंत्री ने ‘लाइफ टाइम अचीवमेंट अवाॅर्ड’ प्रदान किया तो अगले ही साल उन्हें भारत में ‘ग्लोरी आॅफ इंडिया’ से नवाजा गया। यूं सामी को कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी चुके हैं।
अब सवाल सिर्फ इतना है कि क्या अदनान की कला प्रतिभा पर उनका मोदी सरकार के साथ होना भारी पड़ा या फिर यह अवाॅर्ड उन्हें सचमुच उनके संगीत में असाधारण योगदान के लिए दिया जा रहा है? और यह भी कि इस अवाॅर्ड को सियासी नजरिए से जोड़ने से क्या सिद्ध होना है? वैसे आजकल टारगेटेड व्यक्तियों के खानदान का खोलना भी राजनीतिक स्टंट का एक जरूरी हिस्सा बन गया है। मसलन सामी के पिता को आधार बनाकर सामी और मोदी सरकार पर हमला वैसी ही नादानी है, जैसे कि भाजपा अभी सोनिया गांधी के पिता को लेकर कर रही है। केवल पूर्वजों की पुण्याई पर सुख-सुविधा और सम्मानों की पंगत जीमते रहना अगर सही नहीं है तो पूर्वजों की गलती को आधार बनाकर वर्तमान की अदालत में व्यक्ति को दोषी ठहराने की प्रवृत्ति राजनीतिक दृष्टि से भले सही हो, नैतिक दृष्टि से अनुचित है।
दरअसल सामी को पद्म श्री देकर मोदी सरकार ने ऐसा पांसा फेंका है, जिसे विरोधियों को न तो ठीक से निगलते बन रहा है और न ही उगलते बन रहा है। यह तर्क अपनी जगह सही हो सकता है कि जब पाक से आए किसी मुसलमान को पद्श्री के लायक समझा जा सकता है तो वहां प्रताडि़त होकर आए किसी मुसलमान को भारतीय नागरिकता क्यों नहीं दी जा सकती? लेकिन ये तर्क बहुत दमदार इसलिए नहीं है कि सामी से पहले भारत सरकार 272 ऐसे विदेशी अथवा अप्रवासी भारतीयों को पद्म सम्मानों से नवाज चुकी है और इनमें कई कांग्रेस के राज में ही
गए हैं। इसलिए पद्म सम्मान और भारतीय नागरिकता का आपस में कोई सीधा सम्बन्ध नहीं है। सामी की पद्म श्री पर बवाल गैर जरूरी है। पुरस्कार पर उंगली उठाकर ‘राजनीतिक लिफ्ट लेना’ कुछ बेतुका सा है।