प्राकृतिक संसाधनों, पारिस्थितिक तंत्र और जल, जंगल व जमीन को सहेजने में मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना) किस तरह महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, यह देखना हो तो मसनिया पहाड़ पर उगाए गए पेड़ों के बीच खेलते-कूदते
भालूओं के आनंददायक दृश्य का साक्षात्कार करना चाहिए। मनरेगा और वन विभाग की योजनाओं के अभिसरण से वहां न केवल पहाड़ को वृक्षों से आच्छादित किया गया है,
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बल्कि जल संरक्षण के लिए कई चेकडेम भी बनाए गए हैं। मानव और वन्य प्राणी के सह-अस्तित्व को मानवीय कोशिशों से मजबूत करने का नायाब उदाहरण है मसनिया पहाड़
और इसके आसपास के क्षेत्र में मनरेगा और वन विभाग से हुए काम। जांजगीर-चांपा जिले के सक्ती विकासखंड के मसनियाकला और मसनियाखुर्द गांव से लगे मसनिया पहाड़
पर कुछ साल पहले तक हरियाली का नामो-निशान तक नहीं था। पेड़-पौधों से वीरान इस पहाड़ी पर खाने-पीने की कमी हुई तो भालू एवं अन्य वन्य प्राणी गांव की तरफ खींचे चले आए।
नतीजतन भालू और ग्रामीण बार-बार आमने-सामने होने लगे जिससे कभी भालू तो कभी ग्रामीण घायल हुए। भूख के कारण भालू फसलों को भी नुकसान पहुंचाने लगे। इससे ग्रामीणों
में भय व्याप्त रहने लगा और वे इस समस्या से निजात पाने का रास्ता तलाशने लगे।गांववालों ने आपस में चर्चा कर भालूओं को पहाड़ एवं जंगल में ही संरक्षित करने की योजना बनाई।
मसनियाकला ग्राम पंचायत और आश्रित गांव मसनियाखुर्द में ऐसे पौधे लगाने पर विचार किया गया जिससे कि भालूओं को जंगल में ही खाने को मिल जाए और वे गांव की तरफ न आए।
इसके लिए मनरेगा और वन विभाग की योजनाओं के अभिसरण से पहाड़ पर वृक्षारोपण का रास्ता निकाला गया। वर्ष 2017-18 में अगले पांच वर्षों के लिए योजना तैयार कर इसे
अमलीजामा पहनाया गया। लगभग 25 एकड़ जमीन पर मिश्रित पौधों का रोपण किया गया जिसमें सागौन, डूमर, खम्हार, जामुन, आम, बांस, शीशु, अर्जुन, केसियासेमिया और
बेर के 25 हजार पौधे शामिल थे।इस काम के लिए मनरेगा से 29 लाख 38 हजार रूपए स्वीकृत होने के बाद श्रमिकों ने अपनी सहभागिता निभाते हुए दुर्गम मसनिया पहाड़ी पर
पौधे रोपने का काम शुरू किया। यह काम मुश्किल था क्योंकि पौधरोपण के बाद पानी की कमी के चलते अधिक समय तक वह जिंदा नहीं रह पाता था। पानी की समस्या को दूर
करने मनरेगा और वन विभाग के अभिसरण से भूजल संरक्षण के लिए करीब दस लाख रूपए स्वीकृत किए गए। इस राशि से ब्रशवुड चेकडेम, गाडकर चेकडेम, बोल्डर चेकडेक
और कंटूर ट्रेंच का निर्माण किया गया। श्रमिकों ने कड़ी मेहनत से लगातार पौधों को पानी देकर व फेंसिंग कर पौधों को सुरक्षित रखा।अच्छी देखभाल से पौधे दो साल में ही वृक्ष की
तरह लहलहाने लगे। वहां सागौन के 8015, डूमर के 2975, खम्हार के 1815, जामुन के 2445, आम के 2075, बांस के 1425, शीशु के 1245, अर्जुन के 1275, केसियासेमिया
के तीन हजार तथा बेर के 730 पौधों को मिलाकर कुल 25 हजार पौधे रोपे गए। मजदूरों ने कांवर एवं डीजल पंप के माध्यम से इन पौधों की सिंचाई की। पौधों की सुरक्षा के लिए सीमेंट
पोल चैनलिंक से 716 मीटर फेंसिंग की गई। पांच सालों की इस कार्ययोजना में पहले साल वृक्षारोपण और उसके बाद के तीन वर्षों में पौधों के संधारण एवं सुरक्षा कार्य में अब तक कुल 7851 मानव दिवस सीधे रोजगार का सृजन भी हुआ है। इसके लिए श्रमिकों को करीब 14 लाख रूपए का मजदूरी भुगतान किया गया है। वहां मनरेगा अभिसरण से ही निर्मित ब्रशवुड चेकडेम, गाडकर चेकडेम, बोल्डर चेकडेक व कंटूर ट्रेंच से पौधों को भरपूर पानी मिलने से उनकी अच्छी बढ़ोतरी हुई। अभी 10 से 12 फीट तक के पेड़ वहां नजर आने लगे हैं। भू-जल संरक्षण से अब भालूओं को पहाड़ी पर ही पानी मिलने लगा है।
जामवंत परियोजना से भालू रहवास एवं चारागाह विकास
राज्य कैम्पा मद से जामवंत परियोजना के तहत क्षेत्र को विकसित करने के लिए पिछले वित्तीय वर्ष में 48 लाख रूपए स्वीकृत किए गए। इस राशि से वहां जलस्रोत के विकास क
लिए तालाब एवं डबरी बनाया गया है। भालू रहवास एवं चारागाह विकास के लिए छायादार व फलदार 13 हजार 200 पौधे रोपे गए हैं। इनमें बेर, जामुन, छोटा करोंदा,
बेल, गूलर, बरगद, पीपल, सतावर, केवकंद, जंगली हल्दी और शकरकंद के पौधे शामिल हैं। भालूओं को दीमक अति प्रिय है। इसलिए क्षेत्र में दीमक सिफिंटग
(भालू के लिए उपयोगी) को भी यहां स्थापित किया गया है। वनमंडलाधिकारी प्रेमलता यादव कहती हैं कि जल, जंगल और जमीन को बचाने से ही प्रकृति का संतुलन बना हुआ है।
मनरेगा और वन विभाग के तालमेल से मसनिया पहाड़ी में इस दिशा में अहम काम हुआ है। पहाड़ पर वृक्षारोपण और जल संग्रहण से वन्य प्राणी खासकर भालू स्वयं को सुरक्षित महसूस कर रहे हैं।
मानव-भालू द्वंद्व के बजाय सह-अस्तित्व
मसनियाकला के सरपंच संजय कुमार पटेल बताते हैं कि पौधरोपण के बाद से इस क्षेत्र की रंगत बदल गई है। मनरेगा तथा वन विभाग के संयुक्त कार्यों से मानव व भालू के
बीच द्वंद्व अब समाप्त हो गया है और वे सह-अस्तित्व की भावना से एक-दूसरे को नुकसान पहुंचाए बिना साथ मिलकर रहवास कर रहे हैं। फलदार और छायादार पेड़ों ने
पहाड़ को न केवल हरियाली की चादर ओढ़ाई है, बल्कि भालूओं को भी संरक्षण प्रदान किया है। भालूओं को किसी से, किसी तरह का कोई नुकसान न हो, इसके लिए गांव में
भालू मित्र दल का गठन किया गया है। इस दल की सदस्या भगवती पटेल बताती हैं कि गांव में भालूओं का आना-जाना लगा रहता है, लेकिन किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं होती। मसनिया पहाड़ के नीचे पेड़ों के पास भालू अकसर दिख जाते हैं।