सैनिक स्कूल प्रवेश- ऑनलाइन आवेदन

सैनिक स्कूल अंबिकापुर में कक्षा 6वीं और 9वीं में प्रवेश प्रक्रिया प्रारंभ

12 नवम्बर 2020

छत्तीसगढ़ राज्य में रक्षा मंत्रालय के अधीन स्थापित सैनिक स्कूल, अंबिकापुर आवासीय अंग्रेजी माध्यम स्कूल में कक्षा 6वीं और 9वीं में प्रवेश के लिए ऑनलाइन आवेदन की प्रक्रिया प्रारंभ हो गई हैं। सैनिक स्कूल में प्रवेश के लिए इच्छुक अभ्यर्थी 19 नवंबर 2020 तक आधिकारिक वेबसाईट  

https://aissee.nta.nic.in https://aissee.nta.nic.in पर ऑनलाइन आवेदन कर सकते है। आवेदन पत्र में संशोधन 23 से 29 नवंबर के मध्य किए जा सकते हैं।

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इन कक्षाओं के लिए प्रवेश परीक्षा 10 जनवरी 2021 रविवार को छत्तीसगढ़ राज्य के रायपुर, सरगुजा, बिलासपुर, रायगढ़, कांकेर और बस्तर में आयोजित किया जायेगा।

परीक्षा परिणाम 9 फरवरी 2021 को घोषित किया जायेगा। परीक्षार्थी परीक्षा से संबंधित पुराने प्रश्नपत्र वेबसाइट https://aissee.nta.nic.in लिंक से डाउनलोड कर सकते है। 

सैनिक स्कूल अंबिकापुर के प्राचार्य ने बताया कि स्कूल में प्रवेश हेतु रिक्तियों की अनुमानित संख्या कक्षा 6वीं के लिए 100 तथा 9वीं के लिए 22 है। कक्षा 6वीं के लिए छात्र का जन्म एक

अपै्रल 2009 से 31 मार्च 2011 (दोनों दिन सहित) के बीच होना चाहिए। वहीं कक्षा 9वीं के लिए छात्र का जन्म एक अप्रैल 2006 से 31 मार्च 2008 (दोनों दिन सहित) के बीच होना चाहिए। प्रवेश के समय छात्र ने कक्षा 8वीं उत्तीर्ण कर लिया हो।

    सैनिक स्कूल में प्रवेश के लिए आयोजित परीक्षा पेन एवं पेपर (ओ.एम.आर.) आधारित एवं बहुविकल्पीय प्रश्न वाले होंगे। परीक्षा शुल्क अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए 400 रूपए

एवं अन्य वर्गों के लिए 550 रूपए निर्धारित किया गया है। परीक्षा शुल्क का भुगतान डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड, नेट बैंकिंग या पेटीएम वालेट के माध्यम से किया जा सकता हैं।

अखिल भारतीय सैनिक स्कूल प्रवेश परीक्षा से संबंधित अधिक जानकारी के लिए सैनिक स्कूल अम्बिकापुर के आधिकारिक वेबसाईट www.sainikschoolambikapur.org.in पद से प्राप्त कर सकते हैं। 
 

{राज्य की तीन सिंचाई परियोजना का कार्य शीघ्र शुरू करेगा सीआईडीस}

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की सैद्धांतिक सहमति मिलने के बाद राज्य की तीन महत्वपूर्ण सिंचाई परियोजनाओं अहिरन-खारंग लिंक परियोजना, छपराटोला फीडर जलाशय तथा रेहर अटेम लिंक परियोजना का काम शीघ्र शुरू कराए जाने के संबंध में आज कृषि एवं जल संसाधन मंत्री रविन्द्र चौबे, वन एवं पर्यावरण

मंत्री मोहम्मद अकबर की विशेष मौजूदगी में सीआईडीसी बोर्ड की बैठक में विचार-विमर्श किया गया। यह बैठक जल संसाधन मंत्री के निवास कार्यालय में हुई। बैठक में अहिरन-खारंग लिंक

परियोजना, छपरा टोला फीडर जलाशय तथा रेहर अटेम लिंक परियोजना का कार्य सीआईडीसी के माध्यम से कराने के निर्णय के साथ ही उक्त तीनों सिंचाई परियोजनाओं सर्वेक्षण एवं विस्तृत कार्ययोजना तैयार करने के संबंध में चर्चा की गई। इन तीनों परियोजनाओं को पूरा करने पर लगभग 2000 करोड़ रूपए खर्च होंगे

जल संसाधन मंत्री रविन्द्र चौबे ने जल संसाधन विभाग तथा सीआईडीसी के अधिकारियों से उक्त तीनों सिंचाई परियोजनाओं के काम को तेजी से शुरू कराए जाने के लिए आवश्यक कार्रवाई के निर्देश दिए।

मंत्री चौबे ने इनकी विस्तृत कार्ययोजना (डीपीआर) तैयार कर पीएफआईसी को प्रस्तुत करने के भी निर्देश दिए। बैठक में उक्त तीनों सिंचाई परियोजनाओं के लिए वित्तीय स्वीकृति के संबंध में भी चर्चा की गई।

बैठक में अपर मुख्य सचिव वित्त एवं जल संसाधन अमिताभ जैन, प्रमुख सचिव वन मनोज पिंगुआ, कृषि उत्पादन आयुक्त डॉ. एम. गीता, जल संसाधन विभाग के सचिव अविनाश चम्पावत,

राजस्व सचिव सुश्री रीता शांडिल्य, सीआईडीसी के प्रबंध संचालक अनिल राय, प्रमुख अभियंता जल संसाधन जयंत पवार सहित अन्य अधिकारी उपस्थित थे। बैठक में जानकारी दी गई

कि अहिरन खारंग लिंक परियोजना एक पेयजल परियोजना है। जिसकी लागत 720.52 करोड़ रूपए है। कोरबा जिले के कटघोरा विकासखण्ड के ग्राम पोड़ी गोसाई के समीप अहिरन नदी पर बांध निर्माण कर वहां संग्रहित जल को पाईप लाईन के जरिए खारंग जलाशय में जाएगा। खारंग जलाशय से नगर पालिक निगम बिलास

पुर को 31 मिलियन घन मीटर तथा रतनपुर शहर को 1.11 घन मीटर पानी पेयजल के लिए उपलब्ध कराया जाएगा। इसी तरह रेहर-अटेम लिंक परियोजना के माध्यम से सरगुजा जिले की रेहर नदी को हसदेव नदी से जोड़ा जाना है। गौरतलब है कि सूरजपुर जिले के डेडरी ग्राम के समीप रेहर बैराज निर्माणाधीन है। जहां से पानी चैनल के माध्यम से ग्राम परसापाली के समीप बिछली नाला में छोड़कर झिंक नदी से जोड़ना प्रस्तावित है। छपराटोला फीडर जलाशय का निर्माण अरपा नदी पर कोटा तहसील के ग्राम छपरापारा के पास प्रस्तावित है। इसकी लागत लगभग 968 करोड़ रूपए है। छपराटोला फीडर जलाशय का निर्माण का उद्देश्य अरपा नदी का संरक्षण कर ग्रामीणों की आजीविका के साधन बढ़ाने, 22 गांवों में भू-जल संवर्धन तथा पर्यावरण संतुलन को बनाए रखना है।  
 

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